ये किस जगह पे क़दम रुक गए हैं क्या कहिए
कि मंज़िलों के निशाँ तक मिटा के बैठे हैं
Allama Iqbal
Rahat Indori
Wasi Shah
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Habib Jalib
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Javed Akhtar
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
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हर एक हक़ीक़त का फ़साना होगा
सरमाए की अज़्मत का निशाँ देख लिया
आईना क्या किस को दिखाता गली गली हैरत बिकती थी
सादा काग़ज़ पे कोई नाम कभी लिख लेना!
इक ख़्वाब की ताबीर हक़ीक़त ही न हो
इश्क़ की सारी बातें ऐ दिल पागल-पन की बातें हैं
बहुत है एक नज़र
जहन्नम
दीवानगी की राह में गुम-सुम हुआ न था!
जो ज़माने का हम-ज़बाँ न रहा
ख़ामुशी
औरों पे इत्तिफ़ाक़ से सब्क़त मिली मुझे