हर एक हक़ीक़त का फ़साना होगा
अपना भी कभी ऐसा ज़माना होगा
ख़ुद उन की नज़र होगी मोहब्बत की असीर
दिल उन का हमारा भी निशाना होगा
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Habib Jalib
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Javed Akhtar
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
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किसी पे कोई भरोसा करे तो कैसे करे
मेरे सनम-कदे में कई और बुत भी हैं
इस दर्जा हुआ ख़ुश कि डरा दिल से बहुत मैं
फिर अपनी तमन्नाओं का धागा टूटा
औरों पे इत्तिफ़ाक़ से सब्क़त मिली मुझे
हम मिलें या न मिलें फिर भी कभी ख़्वाबों में
सैलाब-ए-ज़िंदगी के सहारे बढ़े चलो
टूटे शीशे की आख़िरी नज़्म
आलाम-ओ-मसाइब में गिरफ़्तार सही
हर रंग में उम्मीद का तारा चमका
ख़ामोशी पे इल्ज़ाम लगाया न करो
ये किस जगह पे क़दम रुक गए हैं क्या कहिए