फिर अपनी तमन्नाओं का धागा टूटा
हाथों से मोहब्बत का वो दामन छूटा
फिर आ गया रुस्वाई का मौसम यारो
दिल आबला था एक नज़र से फूटा
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बुझी बुझी है सदा-ए-नग़्मा कहीं कहीं हैं रबाब रौशन
रेत और दर्द
हर बात यहाँ राज़ बनी जाती है
बरसों पढ़ कर सरकश रह कर ज़ख़्मी हो कर समझा मैं
ख़ामोशी पे इल्ज़ाम लगाया न करो
सज़ा
वो रिंद क्या कि जो पीते हैं बे-ख़ुदी के लिए
अश्क मेरे हैं मगर दीदा-ए-नम है उस का
ये रात जुदाई की बहुत रौशन है
जज़्बा हर इक अंदाम में ढल सकता है
समझा हुआ जब कोई इशारा न मिले
कहते रहें ये लोग कि अच्छा न हुआ