कहते रहें ये लोग कि अच्छा न हुआ
वो कौन सा आशिक़ है कि रुस्वा न हुआ
आज़ाद रहो अपनी मोहब्बत के लिए
ये क्या है कि पहले कभी ऐसा न हुआ
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
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Gulzar
Rahat Indori
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Wasi Shah
Jaun Eliya
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माना कि हर इक तरह के हाएल ग़म हैं
टूटे शीशे की आख़िरी नज़्म
आज़मा लो कि दिल को चैन आए
ख़बर सुनेगा मिरी मौत की तो ख़ुश होगा
रेत और दर्द
क्यूँ अंजुमन-ए-ग़ैर में फ़रियाद करें
तबाह हो के भी इक अपनी आन बाक़ी है
लरज़ लरज़ के न टूटें तो वो सितारे क्या
बहुत है एक नज़र
मरहूम तमन्नाओं को क्या याद करें
जहन्नम
मैं भाग के जाऊँगा कहाँ अपने वतन से