कहते हैं ब-सद-नाज़ मिरा नाम न लो
कैसे हैं ये अंदाज़ मिरा नाम न लो
रुस्वाई से डरती है मोहब्बत अब तक
खुल जाएँगे सब राज़ मिरा नाम न लो
Habib Jalib
Javed Akhtar
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Wasi Shah
Allama Iqbal
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(811) Peoples Rate This
और कोई जो सुने ख़ून के आँसू रोए
ये रात जुदाई की बहुत रौशन है
बहुत ज़ी-फ़हम हैं दुनिया को लेकिन कम समझते हैं!
क़ाफ़िले ख़ुद सँभल सँभल के बढ़े
ऐसी बेगानगी नहीं देखी
दुश्मन-ए-जाँ कोई बना ही नहीं
उस ने कहा!
गूँजता शहरों में तन्हाई का सन्नाटा तो है
महफ़िलों में जा के घबराया किए
ज़र्रे का राज़ मेहर को समझाना चाहिए
अजीब दिल में मिरे आज इज़्तिराब सा है!
मुझे दुश्मन से अपने इश्क़ सा है