क्यूँ अंजुमन-ए-ग़ैर में फ़रियाद करें
फिर ख़ुद को नई तरह से आज़ाद करें
लो ठोकरें खाने का बुलावा आया
अब चल के नए शहर को आबाद करें
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Rahat Indori
Gulzar
Parveen Shakir
Wasi Shah
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
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फ़रेब खा के भी शर्मिंदा-ए-सुकूँ न हुए
दर्द-ए-दिल आज भी है जोश-ए-वफ़ा आज भी है
आईना-ए-महताब लिए आए हैं
बदल के रख देंगे ये तसव्वुर कि आदमी का वक़ार क्या है
अलविदा'अ
हम मिलें या न मिलें फिर भी कभी ख़्वाबों में
गोडो
फिर अपनी तमन्नाओं का धागा टूटा
किसी पे कोई भरोसा करे तो कैसे करे
लरज़ लरज़ के न टूटें तो वो सितारे क्या
ख़ामुशी
ये सोच कर तिरी महफ़िल से हम चले आए