ख़ूँ हो के टपकती है तमन्ना देखो
आशुफ़्तगी-ए-दिल का तमाशा देखो
हाँ सब्र के दामन का सहारा न मिला
बेताबी में होते हुए रुस्वा देखो
Mohsin Naqvi
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बेताबी में हर तरह से बर्बाद रहा
जो ज़माने का हम-ज़बाँ न रहा
उस ने कहा!
जाने क्यूँ उन से मिलते रहते हैं
तबाह हो के भी इक अपनी आन बाक़ी है
काफ़िरी इश्क़ का शेवा है मगर तेरे लिए
क्यूँ अंजुमन-ए-ग़ैर में फ़रियाद करें
औरों पे इत्तिफ़ाक़ से सब्क़त मिली मुझे
क़ाफ़िले ख़ुद सँभल सँभल के बढ़े
हज़ार चाहा लगाएँ किसी से दिल लेकिन
इस तरह कुछ बदल गई है ज़मीं
सौ तरह के सदमों से गुज़रना कैसा