जाने क्यूँ उन से मिलते रहते हैं
ख़ुश वो क्या होंगे जब ख़फ़ा ही नहीं
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मय-ख़ाने में जाने का ये हंगाम नहीं
अब ख़ानुमाँ-ख़राब की मंज़िल यहाँ नहीं
अजीब दिल में मिरे आज इज़्तिराब सा है!
नई जुस्तुजू का अलमिया
कहते हैं ब-सद-नाज़ मिरा नाम न लो
बुझी बुझी है सदा-ए-नग़्मा कहीं कहीं हैं रबाब रौशन
दर्द-ए-दिल आज भी है जोश-ए-वफ़ा आज भी है
उस ने कहा!
जज़्बा हर इक अंदाम में ढल सकता है
आईना क्या किस को दिखाता गली गली हैरत बिकती थी
लरज़ लरज़ के न टूटें तो वो सितारे क्या
सौ तरह के सदमों से गुज़रना कैसा