सौ तरह के सदमों से गुज़रना कैसा
जीना है तो घुट घट के ये मरना कैसा
ये लोग कभी हम को न जीने देंगे
लड़ना है ज़माने से तो डरना कैसा
Jaun Eliya
Gulzar
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
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इस शहर में है कौन हमारा तिरे सिवा
ख़ूँ हो के टपकती है तमन्ना देखो
हर बात यहाँ राज़ बनी जाती है
सज़ा
समझा हुआ जब कोई इशारा न मिले
उस ने कहा!
ख़ामुशी
हमारे ब'अद
चले तो जाते हो रूठे हुए मगर सुन लो
सैलाब-ए-ज़िंदगी के सहारे बढ़े चलो
अब जज़्बा-ए-वहशत की क़सम मत खाओ
दुश्मन-ए-जाँ कोई बना ही नहीं