इस शहर में है कौन हमारा तिरे सिवा
ये क्या कि तू भी अपना कभी हम-नवा न हो
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किसी पे कोई भरोसा करे तो कैसे करे
ऐ रूह-ए-अवध तेरी मोहब्बत के निसार
नई जुस्तुजू का अलमिया
अलविदा'अ
हज़ार चाहा लगाएँ किसी से दिल लेकिन
गूँजता शहरों में तन्हाई का सन्नाटा तो है
अब ख़ानुमाँ-ख़राब की मंज़िल यहाँ नहीं
दुश्मन-ए-जाँ कोई बना ही नहीं
ये रात
आईना क्या किस को दिखाता गली गली हैरत बिकती थी
फ़रेब खा के भी शर्मिंदा-ए-सुकूँ न हुए
सादा काग़ज़ पे कोई नाम कभी लिख लेना!