चले तो जाते हो रूठे हुए मगर सुन लो
हर एक मोड़ पे कोई तुम्हें सदा देगा
Javed Akhtar
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बरसों पढ़ कर सरकश रह कर ज़ख़्मी हो कर समझा मैं
तूफ़ान नई तरह उठा देखें तो
फ़रेब खा के भी शर्मिंदा-ए-सुकूँ न हुए
नई जुस्तुजू का अलमिया
लहरों का आतिश-फ़िशाँ
ख़ूँ हो के टपकती है तमन्ना देखो
जो ज़माने का हम-ज़बाँ न रहा
किसी पे कोई भरोसा करे तो कैसे करे
धरती का बोझ
आईना क्या किस को दिखाता गली गली हैरत बिकती थी
बुझी बुझी है सदा-ए-नग़्मा कहीं कहीं हैं रबाब रौशन
हर बात यहाँ राज़ बनी जाती है