दामन-ए-सब्र के हर तार से उठता है धुआँ
और हर ज़ख़्म पे हंगामा उठा आज भी है
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Anwar Masood
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(721) Peoples Rate This
फ़रेब खा के भी शर्मिंदा-ए-सुकूँ न हुए
आलाम-ओ-मसाइब में गिरफ़्तार सही
हर रंग में उम्मीद का तारा चमका
कहते रहें ये लोग कि अच्छा न हुआ
ख़ामोशी पे इल्ज़ाम लगाया न करो
महफ़िलों में जा के घबराया किए
सज़ा
अब जज़्बा-ए-वहशत की क़सम मत खाओ
सादा काग़ज़ पे कोई नाम कभी लिख लेना!
सौ तरह के सदमों से गुज़रना कैसा
क्यूँ क़हर-ए-ख़ुदावंद-ए-मजाज़ी से डरो