क्यूँ क़हर-ए-ख़ुदावंद-ए-मजाज़ी से डरो
आज़ाद रहो बंदा-नवाज़ी से डरो
महमूद की उल्फ़त का ज़माना ये नहीं
डरना है तो फिर रस्म-ए-अयाज़ी से डरो
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Wasi Shah
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Gulzar
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(784) Peoples Rate This
अश्क मेरे हैं मगर दीदा-ए-नम है उस का
हम मिलें या न मिलें फिर भी कभी ख़्वाबों में
क्या क्या नहीं किया मगर उन पर असर नहीं
मेरा जनम दिन
कभी तो भूल गए पी के नाम तक उन का
अजीब दिल में मिरे आज इज़्तिराब सा है!
माना कि हर इक तरह के हाएल ग़म हैं
समझा हुआ जब कोई इशारा न मिले
ख़ूँ हो के टपकती है तमन्ना देखो
बहुत ज़ी-फ़हम हैं दुनिया को लेकिन कम समझते हैं!
ऐसी बेगानगी नहीं देखी