कभी तो भूल गए पी के नाम तक उन का
कभी वो याद जो आए तो फिर पिया न गया
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ख़ामोशी पे इल्ज़ाम लगाया न करो
इश्क़ की सारी बातें ऐ दिल पागल-पन की बातें हैं
ऐ रूह-ए-अवध तेरी मोहब्बत के निसार
चाहा बहुत कि इश्क़ की फिर इब्तिदा न हो
औरों पे इत्तिफ़ाक़ से सब्क़त मिली मुझे
बेताबी में हर तरह से बर्बाद रहा
कहते रहें ये लोग कि अच्छा न हुआ
ज़र्रे का राज़ मेहर को समझाना चाहिए
सादा काग़ज़ पे कोई नाम कभी लिख लेना!
मेरे सनम-कदे में कई और बुत भी हैं
इस दर्जा हुआ ख़ुश कि डरा दिल से बहुत मैं
मय-ख़ाने में जाने का ये हंगाम नहीं