एक तूफ़ाँ की तरह कब से किनारा-कश है
फिर भी 'बाक़र' मिरी नज़रों में भरम है उस का
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दर्द-ए-दिल आज भी है जोश-ए-वफ़ा आज भी है
हम मिलें या न मिलें फिर भी कभी ख़्वाबों में
क्या क्या नहीं किया मगर उन पर असर नहीं
ख़ूँ हो के टपकती है तमन्ना देखो
ये किस जगह पे क़दम रुक गए हैं क्या कहिए
जाने क्यूँ उन से मिलते रहते हैं
ऐसी बेगानगी नहीं देखी
क्यूँ क़हर-ए-ख़ुदावंद-ए-मजाज़ी से डरो
सैलाब-ए-ज़िंदगी के सहारे बढ़े चलो
अब जज़्बा-ए-वहशत की क़सम मत खाओ
मय-ख़ाने में जाने का ये हंगाम नहीं
बहुत है एक नज़र