फ़ासले ऐसे कि इक उम्र में तय हो न सकें
क़ुर्बतें ऐसी कि ख़ुद मुझ में जनम है उस का
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मरहूम तमन्नाओं को क्या याद करें
ऐ रूह-ए-अवध तेरी मोहब्बत के निसार
कहते हैं ब-सद-नाज़ मिरा नाम न लो
बुझी बुझी है सदा-ए-नग़्मा कहीं कहीं हैं रबाब रौशन
और कोई जो सुने ख़ून के आँसू रोए
आईना-ए-महताब लिए आए हैं
किसी पे कोई भरोसा करे तो कैसे करे
चले तो जाते हो रूठे हुए मगर सुन लो
इस शहर में है कौन हमारा तिरे सिवा
धरती का बोझ
दीमक