अब जज़्बा-ए-वहशत की क़सम मत खाओ
रह रह के मोहब्बत की क़सम मत खाओ
आँखों की चमक खोल न दे सारा भरम
ख़ुद अपनी सदाक़त की क़सम मत खाओ
Mohsin Naqvi
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सज़ा
ख़बर सुनेगा मिरी मौत की तो ख़ुश होगा
मैं भाग के जाऊँगा कहाँ अपने वतन से
मय-ख़ाने में जाने का ये हंगाम नहीं
इश्क़ की सारी बातें ऐ दिल पागल-पन की बातें हैं
दर्द-ए-दिल आज भी है जोश-ए-वफ़ा आज भी है
सौ तरह के सदमों से गुज़रना कैसा
सैलाब-ए-ज़िंदगी के सहारे बढ़े चलो
जाने क्यूँ उन से मिलते रहते हैं
अशआर में ढलता है मिरा सोज़-ए-दरूँ
क्यूँ अंजुमन-ए-ग़ैर में फ़रियाद करें
लहरों का आतिश-फ़िशाँ