आलाम-ओ-मसाइब में गिरफ़्तार सही
इक जोहद-ए-मुसलसल का सज़ा-वार सही
क्या समझेंगे अहबाब तबाही मेरी
मैं लाख बग़ावत का गुनहगार सही
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Javed Akhtar
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Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
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वो रिंद क्या कि जो पीते हैं बे-ख़ुदी के लिए
बेदारी का इक दौर नया आता है
दामन-ए-सब्र के हर तार से उठता है धुआँ
हमारे ब'अद
कौन भला ये कहता है ख़ुद आ के हम को मनाएँ आप
क्यूँ अंजुमन-ए-ग़ैर में फ़रियाद करें
और कोई जो सुने ख़ून के आँसू रोए
तूफ़ान नई तरह उठा देखें तो
मेरे सनम-कदे में कई और बुत भी हैं
काफ़िरी इश्क़ का शेवा है मगर तेरे लिए
बुझी बुझी है सदा-ए-नग़्मा कहीं कहीं हैं रबाब रौशन
अब ख़ानुमाँ-ख़राब की मंज़िल यहाँ नहीं