दर Poetry (page 50)

देखने वाले को बाहर से गुमाँ होता नहीं

हामिद जीलानी

हमीं हैं दर-हक़ीक़त अपने क़ारी

हामिद हुसैन हामिद

वो चाल चल कि ज़माना भी साथ चलने लगे

हमीद नागपुरी

मुझे रहीन-ए-ग़म-ए-जाँ-नवाज़ रहने दे

हमीद नागपुरी

फ़िक्र पाबंदी-ए-हालात से आगे न बढ़ी

हमीद नागपुरी

नियाज़-ओ-नाज़ का पैकर न अर्श पर ठहरा

हमीद कौसर

कैसा ग़ज़ब ये ऐ दिल-ए-पुर-जोश कर दिया

हमीद जालंधरी

मिरी आँखों से हट कर कुछ नहीं है

हमीद गौहर

हमारी ही बदौलत आ गई है

हमीद गौहर

बर्फ़ की वादी

हमीद अलमास

हर्फ़-ए-ग़ज़ल से रंग-ए-तमन्ना भी छीन ले

हमीद अलमास

घर है तो दर भी होगा दीवार भी रहेगी

हमीद अलमास

यक़ीन कैसे करूँगा गुमाँ में रहता हूँ

हमदम कशमीरी

जो होनी थी वो हम-नशीं हो चुकी

हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा

गुदाज़-ए-दिल से परवाना हुआ ख़ाक

हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा

दर्द को रहने भी दे दिल में दवा हो जाएगी

हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा

जो मेरे पास था सब लूट ले गया कोई

हकीम मंज़ूर

देखते हैं दर-ओ-दीवार हरीफ़ाना मुझे

हकीम मंज़ूर

टूट कर बिखरे न सूरज भी है मुझ को डर बहुत

हकीम मंज़ूर

मिरे वजूद की दुनिया में है असर किस का

हकीम मंज़ूर

कोई पयाम अब न पयम्बर ही आएगा

हकीम मंज़ूर

ख़ुशबुओं की दश्त से हमसायगी तड़पाएगी

हकीम मंज़ूर

ढल गया जिस्म में आईने में पत्थर में कभी

हकीम मंज़ूर

छोड़ कर मुझ को कहीं फिर उस ने कुछ सोचा न हो

हकीम मंज़ूर

छोड़ कर बार-ए-सदा वो बे-सदा हो जाएगा

हकीम मंज़ूर

बोसा लिया जो चश्म का बीमार हो गए

हैरत इलाहाबादी

आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं

हैरत इलाहाबादी

मय-कदे में नश्शा की ऐनक दिखाती है मुझे

हैदर अली आतिश

ये आरज़ू थी तुझे गुल के रू-ब-रू करते

हैदर अली आतिश

यार को मैं ने मुझे यार ने सोने न दिया

हैदर अली आतिश

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