दर Poetry (page 49)

ज़मीं सरकती है फिर साएबान टूटता है

हसन अब्बास रज़ा

तुझ से बिछड़ के सम्त-ए-सफ़र भूलने लगे

हसन अब्बास रज़ा

रिया-कारियों से मुसल्लह ये लश्कर मुझे मार देंगे

हसन अब्बास रज़ा

मैं तलाश में किसी और की मुझे ढूँढता कोई और है

हसन अब्बास रज़ा

किसी के हिज्र में यूँ टूट कर रोया नहीं करते

हसन अब्बास रज़ा

कल शब क़सम ख़ुदा की बहुत डर लगा हमें

हसन अब्बास रज़ा

इरादा था कि अब के रंग-ए-दुनिया देखना है

हसन अब्बास रज़ा

एक बे-नाम सा डर सीने में आ बैठा है

हसन अब्बास रज़ा

ख़ुद को पाने की जुस्तुजू है वही

हसन आबिद

सुना कर हाल क़िस्मत आज़मा कर लौट आए हैं

हरी चंद अख़्तर

ख़ामुशी से सवाल मेरा था

हरबंस तसव्वुर

कौन है जो न हुआ बंदिश-ए-ग़म से आज़ाद

हरबंस लाल अनेजा 'जमाल'

सैद को रश्क-ए-चमन दाम ने रहने न दिया

हक़ीर जहानी

किस की उस तक रसाई होती है

हक़ीर

सुलगती याद से ख़ूँ अट न जाए

हनीफ़ तरीन

रात के दर पे ये दस्तक ये मुसलसल दस्तक

हनीफ़ फ़ौक़

मिरी हयात अगर मुज़्दा-ए-सहर भी नहीं

हनीफ़ फ़ौक़

फ़ज़ाओं में कुछ ऐसी खलबली थी

हनीफ़ फ़ौक़

अभी न जाओ अभी रास्ते सजे भी नहीं

हनीफ़ असअदी

इतना सुकून तो ग़म-ए-पिन्हाँ में आ गया

हनीफ़ अख़गर

इश्क़ में दिल का ये मंज़र देखा

हनीफ़ अख़गर

देखना ये इश्क़ में हुस्न-ए-पज़ीराई के रंग

हनीफ़ अख़गर

जिस की सौंधी सौंधी ख़ुशबू आँगन आँगन पलती थी

हम्माद नियाज़ी

यक-ब-यक क्यूँ बंद दरवाज़े हुए

हामिदी काश्मीरी

चाँद कोहरे के जज़ीरों में भटकता होगा

हामिदी काश्मीरी

बस उसी का सफ़र-ए-शब में तलबगार है क्या

हामिदी काश्मीरी

प्यार ईसार वफ़ा शेर-ओ-हुनर की बातें

हमीदा शाहीन

रात काटी है जाग कर बाबा

हामिद सरोश

जब तिलिस्म-ए-असर से निकला था

हामिद जीलानी

दिन को न घर से जाइए लगता है डर मुझे

हामिद जीलानी

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