दीवार Poetry (page 33)

तुर्रा उसे जो हुस्न-ए-दिल-आज़ार ने किया

हैदर अली आतिश

ना-फ़हमी अपनी पर्दा है दीदार के लिए

हैदर अली आतिश

ख़्वाहाँ तिरे हर रंग में ऐ यार हमीं थे

हैदर अली आतिश

जब के रुस्वा हुए इंकार है सच बात में क्या

हैदर अली आतिश

हसरत-ए-जल्वा-ए-दीदार लिए फिरती है

हैदर अली आतिश

ग़म नहीं गो ऐ फ़लक रुत्बा है मुझ को ख़ार का

हैदर अली आतिश

आख़िर-ए-कार चले तीर की रफ़्तार क़दम

हैदर अली आतिश

हुए इश्क़ में इम्तिहाँ कैसे कैसे

हफ़ीज़ जौनपुरी

'इक़बाल' के मज़ार पर

हफ़ीज़ जालंधरी

आख़िरी रात

हफ़ीज़ जालंधरी

बे-चारगी-ए-हसरत-ए-दीदार देखना

हफ़ीज़ होशियारपुरी

हिसार-ए-ज़ात के दीवार-ओ-दर में क़ैद रहे

हफ़ीज़ बनारसी

ज़ुल्मत को ज़िया सरसर को सबा बंदे को ख़ुदा क्या लिखना

हबीब जालिब

दस्तूर

हबीब जालिब

कितना सुकूत है रसन-ओ-दार की तरफ़

हबीब जालिब

कोई बात ऐसी आज ऐ मेरी गुल-रुख़्सार बन जाए

हबीब मूसवी

तमाम रात बुझेंगे न मेरे घर के चराग़

हबाब तिर्मिज़ी

धूल न बनना आईनों पर बार न होना

गुलज़ार वफ़ा चौदरी

हम शाद हों क्या जब तक आज़ार सलामत है

गुलज़ार बुख़ारी

रूह देखी है कभी!

गुलज़ार

ख़ुद-कुशी

गुलज़ार

बारिश होती है तो पानी को भी लग जाते हैं पाँव

गुलज़ार

अकेले

गुलज़ार

ओस पड़ी थी रात बहुत और कोहरा था गर्माइश पर

गुलज़ार

हमें भी अब दर ओ दीवार घर के याद आए

गुलनार आफ़रीन

न पूछ ऐ मिरे ग़म-ख़्वार क्या तमन्ना थी

गुलनार आफ़रीन

दिल के दामन में जो सरमाया-ए-अफ़्कार न था

गुहर खैराबादी

खोल दी है ज़ुल्फ़ किस ने फूल से रुख़्सार पर

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

उल्फ़त का दर्द-ए-ग़म का परस्तार कौन है

गोविन्द गुलशन

शख़्सियत उस ने चमक-दार बना रक्खी है

गोविन्द गुलशन

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