धुआं Poetry (page 11)

शहर वीराँ उदास हैं गलियाँ

हबीब जालिब

गुलशन की फ़ज़ा धुआँ धुआँ है

हबीब जालिब

मुझ को दिमाग़-ए-शेवन-ओ-आह-ओ-फ़ुग़ाँ नहीं

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

चूल्हे नहीं जलाए कि बस्ती ही जल गई

गुलज़ार

आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने हैं

गुलज़ार

आँखों के पोछने से लगा आग का पता

गुलज़ार

डाइरी

गुलज़ार

वो ख़त के पुर्ज़े उड़ा रहा था

गुलज़ार

आँखों में जल रहा है प बुझता नहीं धुआँ

गुलज़ार

ज़िंदगी इश्क़-ओ-मोहब्बत से जवाँ होती है

ग़ुलाम नबी हकीम

मिरी आह-ओ-फ़ुग़ाँ कुछ भी नहीं है

गोर बचन सिंह दयाल मग़मूम

अपनी तस्वीर के इक रुख़ को निहाँ रखता है

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

ये जहाँ-नवर्द की दास्ताँ ये फ़साना डोलते साए का

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

तसल्ली को हमारी बाग़बाँ कुछ और कहता है

ग़ुबार भट्टी

तुम्हारे शहर में आँगन नहीं है

ग़ौस सीवानी

हुस्न ग़म्ज़े की कशाकश से छुटा मेरे बअ'द

ग़ालिब

शाम भी थी धुआँ धुआँ हुस्न भी था उदास उदास

फ़िराक़ गोरखपुरी

शाम-ए-अयादत

फ़िराक़ गोरखपुरी

परछाइयाँ

फ़िराक़ गोरखपुरी

जुगनू

फ़िराक़ गोरखपुरी

जुदाई

फ़िराक़ गोरखपुरी

आज़ादी

फ़िराक़ गोरखपुरी

आधी रात

फ़िराक़ गोरखपुरी

ये मौत-ओ-अदम कौन-ओ-मकाँ और ही कुछ है

फ़िराक़ गोरखपुरी

नर्म फ़ज़ा की करवटें दिल को दुखा के रह गईं

फ़िराक़ गोरखपुरी

ग़म तिरा जल्वा-गह-ए-कौन-ओ-मकाँ है कि जो था

फ़िराक़ गोरखपुरी

आज भी क़ाफ़िला-ए-इश्क़ रवाँ है कि जो था

फ़िराक़ गोरखपुरी

मिसाल-ए-शम्अ जला हूँ धुआँ सा बिखरा हूँ

फ़ाज़िल जमीली

इक तअल्लुक़ था जिसे आग लगा दी उस ने

फ़ाज़िल जमीली

मिसाल-ए-शम्अ जला हूँ धुआँ सा बिखरा हूँ

फ़ाज़िल जमीली

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