दिया Poetry (page 51)

कोई दवा न दे सके मशवरा-ए-दुआ दिया

हफ़ीज़ जालंधरी

कल ज़रूर आओगे लेकिन आज क्या करूँ

हफ़ीज़ जालंधरी

जहाँ क़तरे को तरसाया गया हूँ

हफ़ीज़ जालंधरी

हम ही में थी न कोई बात याद न तुम को आ सके

हफ़ीज़ जालंधरी

दोस्ती का चलन रहा ही नहीं

हफ़ीज़ जालंधरी

दिल से तिरा ख़याल न जाए तो क्या करूँ

हफ़ीज़ जालंधरी

दिल अभी तक जवान है प्यारे

हफ़ीज़ जालंधरी

आ ही गया वो मुझ को लहद में उतारने

हफ़ीज़ जालंधरी

देख कर शम्अ के आग़ोश में परवाने को

हादी मछलीशहरी

ख़लिश-ओ-सोज़ दिल-फ़िगार ही दी

हबीब तनवीर

नीलो

हबीब जालिब

नन्ही जा सो जा

हबीब जालिब

नाम क्या लूँ

हबीब जालिब

मुलाक़ात

हबीब जालिब

अहद-ए-सज़ा

हबीब जालिब

यूँ वो ज़ुल्मत से रहा दस्त-ओ-गरेबाँ यारो

हबीब जालिब

हम ने दिल से तुझे सदा माना

हबीब जालिब

क़दमों पे डर के रख दिया सर ताकि उठ न जाएँ

हबीब मूसवी

उस से क्या छुप सके बनाई बात

हबीब मूसवी

शराब पी जान तन में आई अलम से था दिल कबाब कैसा

हबीब मूसवी

लैस हो कर जो मिरा तर्क-ए-जफ़ा-कार चले

हबीब मूसवी

हुए ख़ल्क़ जब से जहाँ में हम हवस-ए-नज़ारा-ए-यार है

हबीब मूसवी

तिरी तलब ने फ़लक पे सब के सफ़र का अंजाम लिख दिया है

गुलज़ार बुख़ारी

दिए से यूँ दिया जलता रहेगा

गुलज़ार बुख़ारी

आईने का मुँह भी हैरत से खुला रह जाएगा

गुलज़ार बुख़ारी

ये शुक्र है कि मिरे पास तेरा ग़म तो रहा

गुलज़ार

ख़ुदा

गुलज़ार

अलाव

गुलज़ार

मुझे अँधेरे में बे-शक बिठा दिया होता

गुलज़ार

दर्द-ए-दिल के साथ क्या मेरे मसीहा कर दिया

गुहर खैराबादी

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