दिया Poetry (page 52)

उस को मुझ से रुठा दिया किस ने

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

उल्फ़त ये छुपाएँ हम किसी की

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

क़त्ल उश्शाक़ किया करते हैं

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

नज़्ज़ारा-ए-रुख़-ए-साक़ी से मुझ को मस्ती है

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

क्यूँकर न ख़ुश हो सर मिरा लटक्का के दार में

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

दुआएँ माँगीं हैं मुद्दतों तक झुका के सर हाथ उठा उठा कर

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

भूला है बा'द-ए-मर्ग मुझे दोस्त याँ तलक

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

अपना हर उज़्व चश्म-ए-बीना है

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

राह-ए-उल्फ़त में मक़ामात पुराने आए

गोविन्द गुलशन

दिल में ये एक डर है बराबर बना हुआ

गोविन्द गुलशन

फ़ितरत में आदमी की है मुबहम सा एक ख़ौफ़

गोपाल मित्तल

रंगीनी-ए-हवस का वफ़ा नाम रख दिया

गोपाल मित्तल

मसरफ़ के बग़ैर जल रहा हूँ

गोपाल मित्तल

यास की बदली यूँ दिल पर छा गई

गोपाल कृष्णा शफ़क़

मोहब्बत का जिसे सौदा हुआ है

गोपाल कृष्णा शफ़क़

क्या बताऊँ आज वो मुझ से जुदा क्यूँकर हुआ

गोपाल कृष्णा शफ़क़

बात अपनों की करूँ मैं किसी बेगाने से

गोपाल कृष्णा शफ़क़

यारों ने मेरी राह में दीवार खींच कर

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

रख दिया वक़्त ने आईना बना कर मुझ को

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

पहले उस ने मुझे चुनवा दिया दीवार के साथ

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

पस्त-ओ-बुलंद में जो तुझे रिश्ता चाहिए

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

मेरे लब तक जो न आई वो दुआ कैसी थी

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

कहने सुनने का अजब दोनों तरफ़ जोश रहा

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

जो मुझ पे भारी हुई एक रात अच्छी तरह

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

मुझ को ग़रीब और क़रज़-दार देख कर

ग़ुलाम मोहम्मद वामिक़

वक़्त से हम गिला नहीं करते

ग़ुला मोहम्मद सफ़ीर

सब से अच्छा कह के उस ने मुझ को रुख़्सत कर दिया

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

हम ने तुम्हारे ग़म को हक़ीक़त बना दिया

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

तज़ाद

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

समीता-पाटिल

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

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