दुनिया Poetry (page 5)

जहान-ए-तंग में तन्हा हुआ मैं

ज़ाहिद फ़ारानी

नज़्म

ज़ाहिद डार

बरगुज़ीदा हैं हवाओं के असर से हम भी

ज़हीर रहमती

बहुत कुछ वस्ल के इम्कान होते

ज़हीर रहमती

इश्क़ इक हिकायत है सरफ़रोश दुनिया की

ज़हीर काश्मीरी

बड़े दिल-कश हैं दुनिया के ख़म ओ पेच

ज़हीर काश्मीरी

वो अक्सर बातों बातों में अग़्यार से पूछा करते हैं

ज़हीर काश्मीरी

तलब आसूदगी की अर्सा-ए-दुनिया में रखते हैं

ज़हीर काश्मीरी

शब-ए-ग़म याद उन की आ रही है

ज़हीर काश्मीरी

मैं हूँ वहशत में गुम मैं तेरी दुनिया में नहीं रहता

ज़हीर काश्मीरी

इश्क़ इक हिकायत है सरफ़रोश दुनिया की

ज़हीर काश्मीरी

अब है क्या लाख बदल चश्म-ए-गुरेज़ाँ की तरह

ज़हीर काश्मीरी

फटा पड़ता है जोबन और जोश-ए-नौ-जवानी है

ज़हीर देहलवी

हम-नशीं उन के तरफ़-दार बने बैठे हैं

ज़हीर देहलवी

दिल गया दिल का निशाँ बाक़ी रहा

ज़हीर देहलवी

जो ज़ेहन ओ दिल में इकट्ठा था आस का पानी

ज़हीर अहमद ज़हीर

शब के ग़म दिन के अज़ाबों से अलग रखता हूँ

ज़फ़र सहबाई

अक्स ज़ख़्मों का जबीं पर नहीं आने देता

ज़फ़र सहबाई

मोहब्बत की जिस को ख़ुमारी लगे

ज़फ़र कमाली

सर्द रुतों में लोगों को गर्मी पहुँचाने वाले हाथ

ज़फ़र कलीम

खुल गईं आँखें कि जब दुनिया का सच हम पर खुला

ज़फ़र कलीम

इन दिनों मैं ग़ुर्बतों की शाम के मंज़र में हूँ

ज़फ़र कलीम

बख़्त जागे तो जहाँ-दीदा सी हो जाती है

ज़फ़र कलीम

राब्ता क्यूँ रखूँ मैं दरिया से

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

आइना देखें न हम अक्स ही अपना देखें

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

वो सूरत देख ली हम ने तो फिर कुछ भी न देखा

ज़फ़र इक़बाल

शब-ए-विसाल तिरे दिल के साथ लग कर भी

ज़फ़र इक़बाल

जिसे दरवाज़ा कहते थे वही दीवार निकली

ज़फ़र इक़बाल

हम पे दुनिया हुई सवार 'ज़फ़र'

ज़फ़र इक़बाल

एक दिन सुब्ह जो उट्ठें तो ये दुनिया ही न हो

ज़फ़र इक़बाल

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