शोक Poetry (page 6)

उस ने निगाह-ए-लुत्फ़-ओ-करम बार बार की

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

रात का हुस्न भला कब वो समझता होगा

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

क्या बताएँ ग़म-ए-फ़ुर्क़त में कहाँ से गुज़रे

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

ख़ाक सहराओं की पलकों पे सजा ली हम ने

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

हिज्र का ये कर्ब सारा बे-असर हो जाएगा

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

हाइल दिलों की राह में कुछ तो अना भी है

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

इश्क़ में तेरे जंगल भी घर लगते हैं

ज़किया ग़ज़ल

सियह बिस्तर पड़े हैं सुब्ह-ए-नज़्ज़ारा उतर आए

ज़काउद्दीन शायाँ

दिल ही सही समझाने वाला

ज़का सिद्दीक़ी

सौंप कर ख़ाना-ए-दिल ग़म को किधर जाते हो

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

खोया ग़म-ए-रिफ़ाक़त देखो कमाल अपना

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

उस पे करना मिरे नालों ने असर छोड़ दिया

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

न पर्दा खोलियो ऐ इश्क़ ग़म में तू मेरा

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

क्यूँ आईने में देखा तू ने जमाल अपना

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

हम को उस शोख़ ने कल दर तलक आने न दिया

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

लुत्फ़ आता है उन्हें हर ज़ुल्म-ए-नौ-ईजाद में

ज़ैनब बेगम इबरत

कुछ ऐसे हाल-ओ-माज़ी तेरे अफ़्साने भी होते हैं

ज़ेब बरैलवी

इश्क़ की मंज़िल में अब तक रस्म मर जाने की है

ज़ेब बरैलवी

रखी न गई दिल में कोई बात छुपा कर

ज़हरा क़रार

ज़ब्त-ए-ग़म मुश्किल है और मुश्किल है मुश्किल का जवाब

ज़हीर अहमद ताज

मिरे दिल को मोहब्बत ख़ूब गरमाए तो अच्छा हो

ज़हीर अहमद ताज

गेसू-ए-शेर-ओ-अदब के पेच सुलझाता हूँ मैं

ज़हीर अहमद ताज

दिल देख रहे हैं वो जिगर देख रहे हैं

ज़हीर अहमद ताज

हम ने तो शराफ़त में हर चीज़ गँवा दी है

ज़ाहिदुल हक़

कभी इश्क़ साज़-ए-हयात था कभी सोज़-ए-दिल ने जला दिया

ज़ाहिदा ज़ैदी

हमीं से अंजुमन-ए-इश्क़ मो'तबर ठहरी

ज़ाहिदा ज़ैदी

मौत

ज़ाहिदा ज़ैदी

तपिश से फिर नग़्मा-ए-जुनूँ की सुरूद-ओ-चंग-ओ-रबाब टूटे

ज़ाहिदा ज़ैदी

तख़्ईल का दर खोले हुए शाम खड़ी है

ज़ाहिदा ज़ैदी

सिवा है हद से अब एहसास की गिरानी भी

ज़ाहिदा ज़ैदी

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