शोक Poetry (page 8)

दिल को आज़ार लगा वो कि छुपा भी न सकूँ

ज़हीर देहलवी

दिल गया दिल का निशाँ बाक़ी रहा

ज़हीर देहलवी

ख़लिश-ए-इश्क़ से बचपन है दिल एक तरफ़

ज़फ़र ताबाँ

याद में तेरी दो-आलम को भुलाना है हमें

ज़फ़र ताबाँ

याद में तेरी दो आलम को भुलाना है हमें

ज़फ़र ताबाँ

शब के ग़म दिन के अज़ाबों से अलग रखता हूँ

ज़फ़र सहबाई

बदन पर सब्ज़ मौसम छा रहे हैं

ज़फ़र सहबाई

खुल गईं आँखें कि जब दुनिया का सच हम पर खुला

ज़फ़र कलीम

गुमान तक में न था महव-ए-यास कर देगा

ज़फ़र कलीम

लबों पर प्यास सब के बे-कराँ है

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

लबों पर प्यास सब के बे-कराँ है

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

जिस रोज़ से अपना मुझे इदराक हुआ है

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

ख़ुशी मिली तो ये आलम था बद-हवासी का

ज़फ़र इक़बाल

यहाँ किसी को भी कुछ हस्ब-ए-आरज़ू न मिला

ज़फ़र इक़बाल

न कोई ज़ख़्म लगा है न कोई दाग़ पड़ा है

ज़फ़र इक़बाल

ख़ुशी मिली तो ये आलम था बद-हवासी का

ज़फ़र इक़बाल

इसे मंज़ूर नहीं छोड़ झगड़ता क्या है

ज़फ़र इक़बाल

साफ़ जज़्बों के हवाले से तो ग़म हैं लेकिन

ज़फर इमाम

धूप निकली कभी बादल से ढकी रहती है

ज़फर इमाम

तू ख़ुद भी नहीं और तिरा सानी नहीं मिलता

ज़फ़र हमीदी

जब भी वो मुझ से मिला रोने लगा

ज़फ़र हमीदी

अपने दिल-ए-मुज़्तर को बेताब ही रहने दो

ज़फ़र हमीदी

अश्क-ए-ग़म आँख से बाहर भी नहीं आने का

ज़फ़र गोरखपुरी

टूटे तख़्ते पर समुंदर पार करने आए थे

ज़फ़र गौरी

फ़स्ल-ए-गुल को ज़िद है ज़ख़्म दिल का हरा कैसे हो

ज़फ़र गौरी

ख़ून-ए-जिगर आँखों से बहाया ग़म का सहरा पार किया

ज़फ़र अनवर

ज़हर-ए-ग़म दिल में समोने भी नहीं देता है

ज़फ़र अनवर

जैब ओ गरेबाँ टुकड़े टुकड़े दामन को भी तार किया

ज़फ़र अनवर

ये दश्त-ए-शौक़ का लम्बा सफ़र अच्छा नहीं लगता

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

उस से मेरा तो कोई दूर का रिश्ता भी नहीं

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

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