शोक Poetry (page 4)

हम

ज़िया जालंधरी

हरजाई

ज़िया जालंधरी

हाबील

ज़िया जालंधरी

उफ़्ताद तबीअत से इस हाल को हम पहुँचे

ज़िया जालंधरी

तुम्हारी चाहत की चाँदनी से हर इक शब-ए-ग़म सँवर गई है

ज़िया जालंधरी

रास्ते तीरा सही सीने तो बे-नूर नहीं

ज़िया जालंधरी

रंग बातें करें और बातों से ख़ुश्बू आए

ज़िया जालंधरी

क्या सरोकार अब किसी से मुझे

ज़िया जालंधरी

कितने इम्काँ थे जो ख़्वाबों के सहारे देखे

ज़िया जालंधरी

कैसे दुख कितनी चाह से देखा

ज़िया जालंधरी

जब उन्ही को न सुना पाए ग़म-ए-जाँ अपना

ज़िया जालंधरी

फ़ज़ाएँ इस क़दर बे-कल रही हैं

ज़िया जालंधरी

दिल ही दिल में सुलग के बुझे हम और सहे ग़म दूर ही दूर

ज़िया जालंधरी

देखें आईने के मानिंद सहें ग़म की तरह

ज़िया जालंधरी

चाँद ही निकला न बादल ही छमा-छम बरसा

ज़िया जालंधरी

अजब कशाकश-ए-बीम-ओ-रजा है तन्हाई

ज़िया जालंधरी

ऐ दिल-नशीं तलाश तिरी कू-ब-कू न थी

ज़िया जालंधरी

अब ये आँखें किसी तस्कीन से ताबिंदा नहीं

ज़िया जालंधरी

यूँ हसरतों की गर्द में था दिल अटा हुआ

ज़िया फ़तेहाबादी

जुनूँ पे अक़्ल का साया है देखिए क्या हो

ज़िया फ़तेहाबादी

हुस्न है मोहब्बत है मौसम-ए-बहाराँ है

ज़िया फ़तेहाबादी

गो आज अँधेरा है कल होगा चराग़ाँ भी

ज़िया फ़तेहाबादी

फ़रिश्ते इम्तिहान-ए-बंदगी में हम से कम निकले

ज़िया फ़तेहाबादी

आँख से आँसू ढलका होता

ज़िया फ़तेहाबादी

जीना है तो जी लेंगे बहर-तौर दिवाने

ज़ेहरा निगाह

एक तेरा ग़म जिस को राह-ए-मो'तबर जानें

ज़ेहरा निगाह

दिल बुझने लगा आतिश-ए-रुख़्सार के होते

ज़ेहरा निगाह

रास्ते

ज़ेहरा निगाह

ये हुक्म है कि अँधेरे को रौशनी समझो

ज़ेहरा निगाह

क्यूँ ऐ ग़म-ए-फ़िराक़ ये क्या बात हो गई

ज़ेहरा निगाह

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