घर Poetry (page 70)

हर क़दम पर नित-नए साँचे में ढल जाते हैं लोग

हिमायत अली शाएर

अपना अंदाज़-ए-जुनूँ सब से जुदा रखता हूँ मैं

हिमायत अली शाएर

जाम-ए-इश्क़ पी चुके ज़िंदगी भी जी चुके

हिलाल फ़रीद

थी अजब ही दास्ताँ जब तमाम हो गई

हिलाल फ़रीद

रुकने के लिए दस्त-ए-सितम-गर भी नहीं था

हिलाल फ़रीद

तुम भी निगाह में हो अदू भी नज़र में है

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

सितम तीर-ए-निगाह-ए-दिलरुबा था

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

दिल फ़ुर्क़त-ए-हबीब में दीवाना हो गया

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

रास आई न मुझे अंजुमन-आराई भी

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

फिर अँधेरी राह में कोई दिया मिल जाएगा

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

मक़ाम-ए-बर्क़ जिसे आसमाँ भी कहते हैं

हीरा लाल फ़लक देहलवी

अपना घर फिर अपना घर है अपने घर की बात क्या

हीरा लाल फ़लक देहलवी

क्या कहें क्यूँकर हुआ तूफ़ान में पैदा क़फ़स

हीरा लाल फ़लक देहलवी

कू-ए-जानाँ में नहीं कोई गुज़र की सूरत

हीरा लाल फ़लक देहलवी

दिल शादमाँ हो ख़ुल्द की भी आरज़ू न हो

हीरा लाल फ़लक देहलवी

इस का नहीं है ग़म कोई, जाँ से अगर गुज़र गए

हज़ीं लुधियानवी

इस का नहीं है ग़म कोई जाँ से अगर गुज़र गए

हज़ीं लुधियानवी

आँसू को अपने दीदा-ए-तर से निकालना

हज़ीं लुधियानवी

कारज़ार-ए-ज़िंदगी में ऐसे लम्हे आ गए

हयात रिज़वी अमरोहवी

ये जज़्बा-ए-तलब तो मिरा मर न जाएगा

हयात लखनवी

किधर का चाँद हुआ 'मेहर' के जो घर आए

हातिम अली मेहर

ज़िक्र-ए-जानाँ कर जो तुझ से हो सके

हातिम अली मेहर

वारिद कोह-ए-बयाबाँ जब में दीवाना हुआ

हातिम अली मेहर

रंग-ए-सोहबत बदलते जाते हैं

हातिम अली मेहर

पूछेगा जो वो रश्क-ए-क़मर हाल हमारा

हातिम अली मेहर

मेरे ही दिल के सताने को ग़म आया सीधा

हातिम अली मेहर

कोई ले कर ख़बर नहीं आता

हातिम अली मेहर

हम से किनारा क्यूँ है तिरे मुब्तला हैं हम

हातिम अली मेहर

दोपहर रात आ चुकी हीला-बहाना हो चुका

हातिम अली मेहर

ऐ 'मेहर' जो वाँ नक़ाब सर का

हातिम अली मेहर

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