घर Poetry (page 72)

रुत है ऐसी कि दर-ओ-बाम न साए होंगे

हसन निज़ामी

मैं घर से ज़ेहन में कुछ सोचता निकल आया

हसन निज़ामी

रश्क अपनों को यही है हम ने जो चाहा मिला

हसन नईम

ना-उमीदी ने यूँ सताया था

हसन नईम

मिला न काम कोई उम्र-भर जुनूँ के सिवा

हसन नईम

जो ग़म के शो'लों से बुझ गए थे हम उन के दाग़ों का हार लाए

हसन नईम

दिल में उतरोगे तो इक जू-ए-वफ़ा पाओगे

हसन नईम

वो चाँद जो उतरा है किसी और के घर में

हसन नासिर

मंज़र में अगर कुछ भी दिखाई नहीं देगा

हसन नासिर

कोई ग़मगीं कोई ख़ुश हो कर सदा देता रहा

हसन नज्मी सिकन्दरपुरी

आइनों से पहले भी रस्म-ए-ख़ुद-नुमाई थी

हसन नज्मी सिकन्दरपुरी

आइने से न डरो अपना सरापा देखो

हसन नज्मी सिकन्दरपुरी

'हसन-जमील' तिरा घर अगर ज़मीन पे है

हसन जमील

हमारे घर से जाना मुस्कुरा कर फिर ये फ़रमाना

हसन बरेलवी

मिल गया दिल निकल गया मतलब

हसन बरेलवी

मिरे मरने से तुम को फ़िक्र ऐ दिलदार कैसी है

हसन बरेलवी

कहा जब तुम से चारा दर्द-ए-दिल का हो नहीं सकता

हसन बरेलवी

हुस्न जब मक़्तल की जानिब तेग़-ए-बुर्राँ ले चला

हसन बरेलवी

चश्म-ए-ज़ाहिर से रुख़-ए-यार का पर्दा देखा

हसन बरेलवी

अजीब हाल है सहरा-नशीं हैं घर वाले

हसन अज़ीज़

ऐ फ़ैरी-टेल

हसन अकबर कमाल

उसे शिकस्त न होने पे मान कितना था

हसन अकबर कमाल

उस इक उम्मीद को तो राहत-ए-सफ़र न समझ

हसन अकबर कमाल

क्या होता है ख़िज़ाँ बहार के आने जाने से

हसन अकबर कमाल

क्या गुमाँ था कि न होगा कोई हम-सर अपना

हसन अकबर कमाल

हुनर जो तालिब-ए-ज़र हो हुनर नहीं रहता

हसन अकबर कमाल

दुख उठाओ कितने ही घर बहार करने में

हसन अकबर कमाल

कौन देखे मेरी शाख़ों के समर टूटे हुए

हसन आबिदी

हसीन यादों के चाँद को अलविदा'अ कह कर

हसन अब्बासी

उदास शामों बुझे दरीचों में लौट आया

हसन अब्बासी

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