घड़ी Poetry (page 4)

ज़िंदगी रैन-बसेरे के सिवा कुछ भी नहीं

शेर अफ़ज़ल जाफ़री

न करता ज़ब्त मैं नाला तो फिर ऐसा धुआँ होता

ज़ौक़

क्या आए तुम जो आए घड़ी दो घड़ी के बाद

ज़ौक़

हौसले की कमी से डरता हूँ

शौकत परदेसी

दर्द में जब कमी सी होती है

शातिर हकीमी

एक कैंसर के मरीज़ की बड़-बड़

शारिक़ कैफ़ी

निगाह नीची हुई है मेरी

शारिक़ कैफ़ी

उर्दू

शम्स रम्ज़ी

नींद आँखों में समो लूँ तो सियह रात कटे

शमीम तारिक़

रूह को अपनी तह-ए-दाम नहीं कर सकता

शमीम रविश

तुम्हारे चाक पर ऐ कूज़ा-गर लगता है डर हम को

शमीम हनफ़ी

हर नफ़स दीदा-ए-दिल में तिरी यादों का हुजूम

शकूर जावेद

ज़लज़ला

शकील बदायुनी

आख़िरी वक़्त है आख़िरी साँस है ज़िंदगी की है शाम आख़िरी आख़िरी

शकील बदायुनी

हर घड़ी चश्म-ए-ख़रीदार में रहने के लिए

शकील आज़मी

हर घड़ी चश्म-ए-ख़रीदार में रहने के लिए

शकील आज़मी

वक़्त की डोर ख़ुदा जाने कहाँ से टूटे

शकेब जलाली

दिल के वीराने में इक फूल खिला रहता है

शकेब जलाली

आ के पत्थर तो मिरे सहन में दो चार गिरे

शकेब जलाली

मुद्दत से आरज़ू है ख़ुदा वो घड़ी करे

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

मिरी बातों से अब आज़ुर्दा न होना साक़ी

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

कहाँ है दिल जो कहूँ होवे आ के दीवाना

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

साक़ी मुझे ख़ुमार सताए है ला शराब

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

क्यूँकि दीवाना बेड़ियाँ तोड़े

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

देखने से तिरे जी पाता हूँ

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

चमन में दहर के हर गुल है कान की सूरत

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

रदीफ़ क़ाफ़िया बंदिश ख़याल लफ़्ज़-गरी

शहज़ाद क़ैस

खिले जो फूल तो मुँह छुप गया सितारों का

शहज़ाद अहमद

अब निभानी ही पड़ेगी दोस्ती जैसी भी है

शहज़ाद अहमद

ज़िंदगी जैसी तवक़्क़ो थी नहीं कुछ कम है

शहरयार

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