गहर Poetry (page 8)

नूरा

असरार-उल-हक़ मजाज़

मादाम

असरार-उल-हक़ मजाज़

किस से मोहब्बत है

असरार-उल-हक़ मजाज़

आज की रात

असरार-उल-हक़ मजाज़

ये जहाँ बारगह-ए-रित्ल-ए-गिराँ है साक़ी

असरार-उल-हक़ मजाज़

देखिए ख़ाक में मजनूँ की असर है कि नहीं

अशरफ़ अली फ़ुग़ाँ

बस्ती मिली मकान मिले बाम-ओ-दर मिले

असग़र मेहदी होश

कोई हमदम बना के देखो तुम

असर अकबराबादी

गँवा के दिल सा गुहर दर्द-ए-सर ख़रीद लिया

आरज़ू लखनवी

दम-ब-ख़ुद बैठ के ख़ुद जैसे ज़बाँ गीली है

आरज़ू लखनवी

न सहरा है न अब दीवार-ओ-दर है

अर्शी भोपाली

मुख़ालिफ़ों के जिलौ में वो आज शामिल था

अरशदुल क़ादरी

परतव पड़ा जो आरिज़-ए-गुलगून-ए-यार का

अरशद अली ख़ान क़लक़

नहीं चमके ये हँसने में तुम्हारे दाँत अंजुम से

अरशद अली ख़ान क़लक़

आएँगे वो तो आप में हरगिज़ न आएँगे

अरशद अली ख़ान क़लक़

मुझ को तक़दीर ने यूँ बे-सर-ओ-आसार किया

अरशद अब्दुल हमीद

मिरे ख़ेमे ख़स्ता-हाल में हैं मिरे रस्ते धुँद के जाल में हैं

अरशद अब्दुल हमीद

निगाह-ए-तिश्ना से हैरत का बाब देखते हैं

अरमान नज्मी

धूप हो गए साए जल गए शजर जैसे

अनवर अंजुम

ज़ख़्म-ए-नज़ारा ख़ून-ए-नज़र देखते रहो

अनवर मोअज़्ज़म

रहे ज़रा दिल-ए-ख़ूँ-गश्ता पर नज़र 'अंजुम'

अंजुम रूमानी

यहाँ तो फिर वही दीवार-ओ-दर निकल आए

अंजुम रूमानी

दिन हो कि रात, कुंज-ए-क़फ़स हो कि सेहन-ए-बाग़

अंजुम रूमानी

दस्तार-ए-हुनर बख़्शिश-ए-दरबार नहीं है

अंजुम ख़लीक़

तेशा-ब-कफ़ को आइना-गर कह दिया गया

अंजुम इरफ़ानी

मेरी दुनिया में अभी रक़्स-ए-शरर होता है

अंजुम आज़मी

बनाए सब ने इसी ख़ाक से दिए अपने

अंजुम अंसारी

बड़ा आज़ार-ए-जाँ है वो अगरचे मेहरबाँ है वो

अनीस अंसारी

तुम अगर चाहो तो

अमजद नजमी

रवाँ दवाँ नहीं याँ अश्क चश्म-ए-तर की तरह

अमानत लखनवी

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