रहे ज़रा दिल-ए-ख़ूँ-गश्ता पर नज़र 'अंजुम'
उसी सदफ़ से अजब क्या गुहर निकल आए
Anwar Masood
Javed Akhtar
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Gulzar
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
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दुखी दिलों के लिए ताज़ियाना रखता है
आएगी हम को रास न यक-रंगी-ए-ख़ला
यहाँ तो फिर वही दीवार-ओ-दर निकल आए
और कुछ दिन ख़राब हो लीजे
दिन हो कि रात कुंज-ए-क़फ़स हो कि सेहन-ए-बाग़
है वाक़िआ कुछ और रिवायत कुछ और है
मौसम का आह-ओ-नाला से अंदाज़ा कीजिए
ये जितने मसअले हैं मश्ग़ले हैं सब फ़राग़त के
किस की जबीं पे हैं ये सितारे अरक़ अरक़
पाप करो जी खोल कर धब्बों की क्या सोच
दिन हो कि रात, कुंज-ए-क़फ़स हो कि सेहन-ए-बाग़