और कुछ दिन ख़राब हो लीजे
सूद अपना है इस ज़ियाँ में अभी
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आएगी हम को रास न यक-रंगी-ए-ख़ला
किस की जबीं पे हैं ये सितारे अरक़ अरक़
नहीं नाम-ओ-निशाँ साए का लेकिन यार बैठे हैं
दिन हो कि रात, कुंज-ए-क़फ़स हो कि सेहन-ए-बाग़
जाए ख़िरद नहीं है कि फ़रज़ाना चाहिए
हम से बात में पेच न डाल
यहाँ तो फिर वही दीवार-ओ-दर निकल आए
है जो तासीर सी फ़ुग़ाँ में अभी
मौसम का आह-ओ-नाला से अंदाज़ा कीजिए
सच के सौदे में न पड़ना कि ख़सारा होगा
गुज़र रहे हैं गुज़रने वाले