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हर चंद उन्हें अहद फ़रामोश न होगा
रहे ज़रा दिल-ए-ख़ूँ-गश्ता पर नज़र 'अंजुम'
दुखी दिलों के लिए ताज़ियाना रखता है
जाए ख़िरद नहीं है कि फ़रज़ाना चाहिए
देते नहीं सुझाई जो दुनिया के ख़त्त-ओ-ख़ाल
यहाँ तो फिर वही दीवार-ओ-दर निकल आए
पाप करो जी खोल कर धब्बों की क्या सोच
दिन हो कि रात कुंज-ए-क़फ़स हो कि सेहन-ए-बाग़
क़लंदरी है कि रखता है दिल ग़नी 'अंजुम'
ये जितने मसअले हैं मश्ग़ले हैं सब फ़राग़त के
दिल से उठता है सुब्ह-ओ-शाम धुआँ
किस की जबीं पे हैं ये सितारे अरक़ अरक़