पाप करो जी खोल कर धब्बों की क्या सोच
जब जी चाहा धो लिए गंगा-जल के साथ
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ये जितने मसअले हैं मश्ग़ले हैं सब फ़राग़त के
मौसम का आह-ओ-नाला से अंदाज़ा कीजिए
दिन हो कि रात, कुंज-ए-क़फ़स हो कि सेहन-ए-बाग़
हम से भी गाहे गाहे मुलाक़ात चाहिए
हम से बात में पेच न डाल
यहाँ तो फिर वही दीवार-ओ-दर निकल आए
गुज़र रहे हैं गुज़रने वाले
आएगी हम को रास न यक-रंगी-ए-ख़ला
जब भी कोई बात की आँसू ढलके साथ
नहीं नाम-ओ-निशाँ साए का लेकिन यार बैठे हैं
है वाक़िआ कुछ और रिवायत कुछ और है
किस की जबीं पे हैं ये सितारे अरक़ अरक़