किस की जबीं पे हैं ये सितारे अरक़ अरक़
किस के लहू से चाँद का दामन है दाग़ दाग़
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है वाक़िआ कुछ और रिवायत कुछ और है
आएगी हम को रास न यक-रंगी-ए-ख़ला
जब भी कोई बात की आँसू ढलके साथ
आज का झगड़ा आज चुका
मौसम का आह-ओ-नाला से अंदाज़ा कीजिए
दिन हो कि रात, कुंज-ए-क़फ़स हो कि सेहन-ए-बाग़
सच के सौदे में न पड़ना कि ख़सारा होगा
हम से भी गाहे गाहे मुलाक़ात चाहिए
है जो तासीर सी फ़ुग़ाँ में अभी
और कुछ दिन ख़राब हो लीजे
दिन हो कि रात कुंज-ए-क़फ़स हो कि सेहन-ए-बाग़
पाप करो जी खोल कर धब्बों की क्या सोच