आएगी हम को रास न यक-रंगी-ए-ख़ला
अहल-ए-ज़मीं हैं हम हमें दिन रात चाहिए
Rahat Indori
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सच के सौदे में न पड़ना कि ख़सारा होगा
दुखी दिलों के लिए ताज़ियाना रखता है
जब भी कोई बात की आँसू ढलके साथ
दिन हो कि रात, कुंज-ए-क़फ़स हो कि सेहन-ए-बाग़
है जो तासीर सी फ़ुग़ाँ में अभी
रहे ज़रा दिल-ए-ख़ूँ-गश्ता पर नज़र 'अंजुम'
जाए ख़िरद नहीं है कि फ़रज़ाना चाहिए
हम से भी गाहे गाहे मुलाक़ात चाहिए
है वाक़िआ कुछ और रिवायत कुछ और है
देते नहीं सुझाई जो दुनिया के ख़त्त-ओ-ख़ाल
क़लंदरी है कि रखता है दिल ग़नी 'अंजुम'