गुल Poetry (page 50)

कर्ब वहशत उलझनें और इतनी तन्हाई कि बस

हमदुन उसमानी

हुआ है सामने आँखों के ख़ानदाँ आबाद

हमदम कशमीरी

बुलबुल को फिर चमन में लगा लाई बू-ए-गुल

हकीम सय्यद मोहम्मद ग़ाज़ीपुरी

कब इस ज़मीं की सम्त समुंदर पलट कर आए

हकीम मंज़ूर

बयाबाँ-ज़ाद कोई क्या कहे ख़ुद बे-मकाँ है

हकीम मंज़ूर

अजब सहरा बदन पर आब का इबहाम रक्खा है

हकीम मंज़ूर

इक तो ख़ुद अपनी ग़मगीनी

हैरत शिमलवी

एक तो ख़ुद अपनी ग़मगीनी

हैरत शिमलवी

हुस्न भी है पनाह में इश्क़ भी है पनाह में

हैरत गोंडवी

ये महव हुए देख के बे-साख़्ता-पन को

हैरत इलाहाबादी

मता-ए-दर्द का ख़ूगर मिरी तलाश में है

हैदर अली जाफ़री

इश्क़ की अंजुमन की बात करें

हैदर अली जाफ़री

होता फ़नकार-ए-जदीद और न शाएर होता

हैदर अली जाफ़री

ये आरज़ू थी तुझे गुल के रू-ब-रू करते

हैदर अली आतिश

पा-ब-गिल बे-ख़ुदी-ए-शौक़ से मैं रहता था

हैदर अली आतिश

ज़िंदे वही हैं जो कि हैं तुम पर मरे हुए

हैदर अली आतिश

ये किस रश्क-ए-मसीहा का मकाँ है

हैदर अली आतिश

ये आरज़ू थी तुझे गुल के रू-ब-रू करते

हैदर अली आतिश

यार को मैं ने मुझे यार ने सोने न दिया

हैदर अली आतिश

या-अली कह कर बुत-ए-पिंदार तोड़ा चाहिए

हैदर अली आतिश

वो नाज़नीं ये नज़ाकत में कुछ यगाना हुआ

हैदर अली आतिश

वहशी थे बू-ए-गुल की तरह इस जहाँ में हम

हैदर अली आतिश

वहशत-ए-दिल ने किया है वो बयाबाँ पैदा

हैदर अली आतिश

तुर्रा उसे जो हुस्न-ए-दिल-आज़ार ने किया

हैदर अली आतिश

तार-तार-ए-पैरहन में भर गई है बू-ए-दोस्त

हैदर अली आतिश

सुन तो सही जहाँ में है तेरा फ़साना क्या

हैदर अली आतिश

सब्ज़ा बाला-ए-ज़क़न दुश्मन है ख़ल्क़ुल्लाह का

हैदर अली आतिश

रोज़-ए-मौलूद से साथ अपने हुआ ग़म पैदा

हैदर अली आतिश

रफ़्तगाँ का भी ख़याल ऐ अहल-ए-आलम कीजिए

हैदर अली आतिश

पिसे दिल उस की चितवन पर हज़ारों

हैदर अली आतिश

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