गुलशन Poetry (page 13)

किसी अपने से होती है न बेगाने से होती है

फ़िगार उन्नावी

ग़म-ए-जानाँ से रंगीं और कोई ग़म नहीं होता

फ़िगार उन्नावी

ये दौर कैसा है या-इलाही कि दोस्त दुश्मन से कम नहीं है

फ़ाज़िल अंसारी

दिल के मकाँ में आँख के आँगन में कुछ न था

फ़ाज़िल अंसारी

बता ऐ ज़िंदगी तेरे परस्तारों ने क्या पाया

फ़ाज़िल अंसारी

अश्क आया आँख में जलता हुआ

फ़ाज़िल अंसारी

कीसा-ए-गुल में बंद थी ख़ुशबू

फ़रताश सय्यद

रंग-दर-रंग हिजाबात उठाने होंगे

फ़ारिग़ बुख़ारी

मैं अपने-आप से बरहम था वो ख़फ़ा मुझ से

फ़रहत शहज़ाद

वो खुल कर मुझ से मिलता भी नहीं है

फ़रहत क़ादरी

जितने लोग नज़र आते हैं सब के सब बेगाने हैं

फ़रहत क़ादरी

बिछड़े घर का साया

फ़रहत एहसास

तक़ाज़ा

फ़रीद इशरती

काग़ज़ के फूल

फ़रीद इशरती

कुछ बस ही न था वर्ना ये इल्ज़ाम न लेते

फ़ानी बदायुनी

यूँ दिखाता है आँखें हमें बाग़बाँ

फ़ना निज़ामी कानपुरी

कोई समझेगा क्या राज़-ए-गुलशन

फ़ना निज़ामी कानपुरी

मेरे चेहरे से ग़म आश्कारा नहीं

फ़ना निज़ामी कानपुरी

कोई समझेगा क्या राज़-ए-गुलशन

फ़ना निज़ामी कानपुरी

घर हुआ गुलशन हुआ सहरा हुआ

फ़ना निज़ामी कानपुरी

गुलों के चेहरा-ए-रंगीं पे वो निखार नहीं

फ़ैज़ी निज़ाम पुरी

सुब्ह-ए-नौ लाती है हर शाम तुम्हें क्या मा'लूम

फ़ैज़ुल हसन

लोग कहते हैं कि क़ातिल को मसीहा कहिए

फ़ैज़ुल हसन

हम ने सहरा को सजाया था गुलिस्ताँ की तरह

फ़ैज़ुल हसन

गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ज़िंदगी

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

तौक़-ओ-दार का मौसम

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

तह-ए-नुजूम

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मरसिए

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ख़त्म हुई बारिश-ए-संग

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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