गुलशन Poetry (page 5)

रो रही है जिस तरह ये शम्अ परवाने के बाद

शौक़ देहलवी मक्की

ख़िलाफ़-ए-हंगामा-ए-तशद्दुद क़दम जो हम ने बढ़ा दिए हैं

शौक़ बहराइची

दिखाई देंगे जो गुल मेज़ पर क़रीने से

शारिक़ जमाल

किसी के वादा-ए-फ़र्दा में गुम है इंतिज़ार अब भी

शम्स फ़र्रुख़ाबादी

किसी से पूछें कौन बताए किस ने महशर देखा है

शमीम तारिक़

समझे है मफ़्हूम नज़र का दिल का इशारा जाने है

शमीम करहानी

हमारे साथ जिसे मौत से हो प्यार चले

शमीम जयपुरी

दुनिया-ए-मोहब्बत में हम से हर अपना पराया छूट गया

शमीम जयपुरी

रक़्क़ासा-ए-हयात से

शकील बदायुनी

मुझे भूल जा

शकील बदायुनी

सुब्ह का अफ़्साना कह कर शाम से

शकील बदायुनी

मौसम-ए-गुल साथ ले कर बर्क़ ओ दाम आ ही गया

शकील बदायुनी

ला रहा है मय कोई शीशे में भर के सामने

शकील बदायुनी

जो दिल पे गुज़रती है वो समझा नहीं सकते

शकील बदायुनी

बस इक निगाह-ए-करम है काफ़ी अगर उन्हें पेश-ओ-पस नहीं है

शकील बदायुनी

क्या कहिए कि अब उस की सदा तक नहीं आती

शकेब जलाली

बैत-बहसी न कर ऐ फ़ाख़्ता गुलशन में कि आज

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

मैं अपने दस्त पर शब ख़्वाब में देखा कि अख़गर था

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

कशिश से दिल की उस अबरू-कमाँ को हम रखा बहला

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

कशिश से दिल की उस अबरू कमाँ को हम रखा बहला

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

जिस ने आदम के तईं जाँ बख़्शा

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

जल्वा-गर फ़ानूस-ए-तन में है हमारा मन चराग़

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

जब वो आली-दिमाग़ हँसता है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

इश्क़ के शहर की कुछ आब-ओ-हवा और ही है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

हमारी सैर को गुलशन से कू-ए-यार बेहतर था

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

देखते सज्दे में आता है जो करता है निगाह

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

अजब अहवाल देखा इस ज़माने के अमीरों का

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

न बस्तियों को अज़ीज़ रक्खें न हम बयाबाँ से लौ लगाएँ

शहज़ाद अहमद

कुछ न कुछ हो तो सही अंजुमन-आराई को

शहज़ाद अहमद

देख अब अपने हयूले को फ़ना होते हुए

शहज़ाद अहमद

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