गुलशन Poetry (page 6)

अक़्ल हर बात पे हैराँ है इसे क्या कहिए

शहज़ाद अहमद

ज़ेहन में लगता है जब ख़ुश-रंग लफ़्ज़ों का हुजूम

शाहिद मीर

भर गए ज़ख़्म तो क्या दर्द तो अब भी कोई है

शाहिद कमाल

कितने गुलशन कि सजे थे मिरे इक़रार के नाम

शहबाज़ ख़्वाजा

कब गवारा है मुझे और कहीं पर चमके

शहबाज़ ख़्वाजा

अब कहाँ ले के छुपें उर्यां बदन और तन जला

शहाब जाफ़री

सुब्ह-ए-गुलशन में हो गर वो गुल-ए-ख़ंदाँ पैदा

शाह नसीर

मेरी तुर्बत पर चढ़ाने ढूँडता है किस के फूल

शाह नसीर

ख़ानदान-ए-क़ैस का मैं तो सदा से पीर हूँ

शाह नसीर

जब तलक चर्ब न जूँ शम्-ए-ज़बाँ कीजिएगा

शाह नसीर

हार बना इन पारा-ए-दिल का माँग न गजरा फूलों का

शाह नसीर

छोड़ा न तुझे ने राम क्या ये भी न हुआ वो भी न हुआ

शाह नसीर

ये किस के सोज़ का है बज़्म-ए-जाँ में इंतिज़ार ऐ दिल

शाह दीन हुमायूँ

कोई दम थमता नहीं बारान-ए-अश्क

शाह आसिम

कौन-ओ-मकाँ में यारो आबाद हैं तो हम हैं

शाह आसिम

मुल्ज़िम ठहरी मैं अपनी सच्चाई से

सगुफ़ता यासमीन

कली पर मुस्कुराहट आज भी मालूम होती है

शफ़ीक़ जौनपुरी

लिल्लाह कोई कोशिश न करे उल्फ़त में मुझे समझाने की

शादाँ इंदौरी

हुई तो जा दिल में उस सनम की नमाज़ में सर झुका झुका कर

शाद लखनवी

बद-गुमानी जो हुई शम्अ' से परवाने को

शाद लखनवी

जब ख़िलाफ़-ए-मस्लहत जीने की नौबत आई थी

शब्बीर शाहिद

जब ख़िलाफ़-ए-मस्लहत जीने की नौबत आई थी

शब्बीर शाहिद

मयस्सर जिन की नज़रों को तिरे गेसू के साए हैं

शाद आरफ़ी

क्या करें गुलशन पे जोबन ज़ेर-ए-दाम आया तो क्या

शाद आरफ़ी

जो भी अपनों से उलझता है वो कर क्या लेगा

शाद आरफ़ी

जब तक हम हैं मुमकिन ही नहीं ना-महरम महरम हो जाएँ

शाद आरफ़ी

अहद-ए-मायूसी जहाँ तक साज़गार आता गया

शाद आरफ़ी

वुसअतें महदूद हैं इदराक-ए-इंसाँ के लिए

सीमाब अकबराबादी

नसीम-ए-सुब्ह गुलशन में गुलों से खेलती होगी

सीमाब अकबराबादी

हुआ दे कर दबे शो'लों को भड़काया नहीं जाता

सय्यद जहीरुद्दीन ज़हीर

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