गुलशन Poetry (page 8)

रुख़-ए-रौशन पे सफ़ा लोट गई

सख़ी लख़नवी

है चमन में रहम गुलचीं को न कुछ सय्याद को

सख़ी लख़नवी

बहार आ कर जो गुलशन में वो गाएँ

सख़ी लख़नवी

अक्सर बैठे तन्हाई की ज़ुल्फ़ें हम सुलझाते हैं

सज्जाद बाक़र रिज़वी

यूँ जुदा हुए मेरे दर्द-आश्ना मुझ से

सज्जाद बलूच

हिजाबात उठ रहे हैं दरमियाँ से

साजिद सिद्दीक़ी लखनवी

तारे सारे रक़्स करेंगे चाँद ज़मीं पर उतरेगा

साजिद हाश्मी

धरती की सुलगती छाती से बेचैन शरारे पूछते हैं

साहिर लुधियानवी

गुलशन गुलशन फूल

साहिर लुधियानवी

अब कोई गुलशन न उजड़े अब वतन आज़ाद है

साहिर लुधियानवी

निशाँ इल्म-ओ-अदब का अब भी है उजड़े दयारों में

साहिर देहल्वी

क़ाबील का साया

सहर अंसारी

कलियों की महक होता तारों की ज़िया होता

साग़र सिद्दीक़ी

बात फूलों की सुना करते थे

साग़र सिद्दीक़ी

दश्त में क़ैस नहीं कोह पे फ़रहाद नहीं

साग़र निज़ामी

कहूँ तो क्या मैं कहूँ प्यारी प्यारी आँखों को

साग़र ख़य्यामी

बैठे हैं ऐसे ज़ुल्फ़ में कलियाँ सँवार के

साग़र ख़य्यामी

हर शख़्स को ऐसे देखता हूँ

सादिक़ नसीम

दिखाएगी असर दिल की पुकार आहिस्ता आहिस्ता

सदा अम्बालवी

तेरी याद मेरी भूल

साबिर दत्त

फूल बिखराती हर इक मौज-ए-हवा आती है

साबिर दत्त

चाँदनी रात में शानों से ढलकती चादर

साबिर दत्त

तुझ से दामन-कशाँ नहीं हूँ मैं

सबा अकबराबादी

इस रंग में अपने दिल-ए-नादाँ से गिला है

सबा अकबराबादी

उड़ा सकता नहीं कोई मिरे अंदाज़-ए-शेवन को

साइल देहलवी

ख़िज़ाँ का जो गुलशन से पड़ जाए पाला

साइल देहलवी

बनते ही शहर का ये देखिए वीराँ होना

एस ए मेहदी

हर तल्ख़ हक़ीक़त का इज़हार भी करना है

रूही कंजाही

ये एहतियात इश्क़ पे लाज़िम सदा रहे

रोहित सोनी ‘ताबिश’

रंग पर कल था अभी लाला-ए-गुलशन कैसा

रियाज़ ख़ैराबादी

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