गुलशन Poetry (page 9)

मुँह ज़ेर-ए-ताक खोला वाइज़ बहुत ही चूका

रियाज़ ख़ैराबादी

ख़्वाब में भी नज़र आ जाए जो घर की सूरत

रियाज़ ख़ैराबादी

जो पिलाए वो रहे यारब मय-ओ-साग़र से ख़ुश

रियाज़ ख़ैराबादी

फ़रियाद-ए-जुनूँ और है बुलबुल की फ़ुग़ाँ और

रियाज़ ख़ैराबादी

आप आए तो ख़याल-ए-दिल-ए-नाशाद आया

रियाज़ ख़ैराबादी

जो ख़ुद न अपने इरादे से बद-गुमाँ होता

रज़ा लखनवी

हाथ उस के न आया दामन-ए-नाज़

रज़ा अज़ीमाबादी

पचास सालों में दो इक बरस का रिश्ता था

रज़ा अश्क

है बे-ख़ुद वस्ल में दिल हिज्र में मुज़्तर सिवा होगा

रशीद लखनवी

डर नहीं थूकते हैं ख़ून जो दुख पाए हुए

रशीद लखनवी

दम-ए-रफ़्तार-ए-जानाँ ये सदा-ए-नाज़ आती है

रशीद लखनवी

इस उजड़े शहर के आसार तक नहीं पहुँचे

रऊफ़ अमीर

यक़ीनन है कोई माह-ए-मुनव्वर पीछे चिलमन के

रंजूर अज़ीमाबादी

जलने का हुनर सिर्फ़ फ़तीले के लिए था

रम्ज़ अज़ीमाबादी

फिर भीग चलीं आँखें चलने लगी पुर्वाई

राम कृष्ण मुज़्तर

पड़ी रहेगी अगर ग़म की धूल शाख़ों पर

राजेन्द्र नाथ रहबर

मरीज़-ए-हिज्र को सेहत से अब तो काम नहीं

रजब अली बेग सुरूर

परेशाँ करने वालों को परेशाँ कौन देखेगा

रहमत इलाही बर्क़ आज़मी

दब गईं मौजें यकायक जोश में आने के बा'द

रहमत इलाही बर्क़ आज़मी

कहाँ ताक़त ये रूसी को कहाँ हिम्मत ये जर्मन को

इक़बाल सुहैल

हर कसी को कब भला यूँ मुस्तरद करता हूँ मैं

इक़बाल साजिद

न कोई ग़ैर न अपना दिखाई देता है

इक़बाल मिनहास

उस को नग़्मों में समेटूँ तो बुका जाने है

इक़बाल मतीन

ज़ीस्त तकरार-ए-नफ़स हो जैसे

इक़बाल माहिर

तमाशाई बने रहिए तमाशा देखते रहिए

इक़बाल अशहर

बहार आई तो खुल कर कहा है फूलों ने

इन्दिरा वर्मा

तिरे ख़याल का चर्चा तिरे ख़याल की बात

इन्दिरा वर्मा

यूँही अक्सर मुझे समझा बुझा कर लौट जाती है

इम्तियाज़ अहमद

क्यूँ देखिए न हुस्न-ए-ख़ुदा-दाद की तरफ़

इम्दाद इमाम असर

कभी देखें जो रू-ए-यार दरख़्त

इमदाद अली बहर

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