बहार आई तो खुल कर कहा है फूलों ने
ये किस ने छेड़ दी गुलशन में फिर जमाल की बात
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ये मौसम सुरमई है और मैं हूँ
दिल के बेचैन जज़ीरों में उतर जाएगा
बहारों के आँचल में ख़ुश-बू छुपी है
ये कैसी वक़्त ने बदली है करवट
मिरी चाहतों में ग़ुरूर हो दिल-ए-ना-तवाँ में सुरूर हो
ये शफ़क़ चाँद सितारे नहीं अच्छे लगते
अभी से कैसे कहूँ तुम को बेवफ़ा साहब
ज़िंदगी आज तेरा लुत्फ़ ओ करम
उस से मत कहना मिरी बे-सर-ओ-सामानी तक
काश वो पहली मोहब्बत के ज़माने आते
हज़ार ख़्वाब लिए जी रही हैं सब आँखें