उस से मत कहना मिरी बे-सर-ओ-सामानी तक
वो न आ जाए कहीं मिरी परेशानी तक
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रौशनी फूट निकली मिसरों से
शफ़क़ के रंग निकलने के बाद आई है
बहार आई तो खुल कर कहा है फूलों ने
ये शफ़क़ चाँद सितारे नहीं अच्छे लगते
तिरे ख़याल का चर्चा तिरे ख़याल की बात
ये मौसम सुरमई है और मैं हूँ
दिल के बेचैन जज़ीरों में उतर जाएगा
यूँ वफ़ा के सारे निभाओ ग़म कि फ़रेब में भी यक़ीन हो
दोस्त जब ज़ी-वक़ार होता है
हज़ार ख़्वाब लिए जी रही हैं सब आँखें
कभी मुड़ के फिर इसी राह पर न तो आए तुम न तो आए हम
ये कैसी वक़्त ने बदली है करवट