वक़्त ख़ामोश है टूटे हुए रिश्तों की तरह
वो भला कैसे मिरे दिल की ख़बर पाएगा
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कैसे सहरा में भटकता है मिरा तिश्ना लब
उस से मत कहना मिरी बे-सर-ओ-सामानी तक
मुझे रंग दे न सुरूर दे मिरे दिल में ख़ुद को उतार दे
ये रौशनी तिरे कमरे में ख़ुद नहीं आई
ये शफ़क़ चाँद सितारे नहीं अच्छे लगते
शफ़क़ के रंग निकलने के बाद आई है
तुम्हारे बिना सब अधूरे हैं जानाँ
हज़ार ख़्वाब लिए जी रही हैं सब आँखें
आप का लहजा शहद जैसा तरन्नुम-ख़ेज़ है
यूँ वफ़ा के सारे निभाओ ग़म कि फ़रेब में भी यक़ीन हो
रौशनी फूट निकली मिसरों से