कैसे सहरा में भटकता है मिरा तिश्ना-लब
कैसी बस्ती है जहाँ मिलता नहीं पानी तक
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कैसे सहरा में भटकता है मिरा तिश्ना लब
बहारों के आँचल में ख़ुश-बू छुपी है
ये शफ़क़ चाँद सितारे नहीं अच्छे लगते
अभी से कैसे कहूँ तुम को बेवफ़ा साहब
मोहब्बत में आया है तन्हा अभी रंग
उस से मत कहना मिरी बे-सर-ओ-सामानी तक
कुछ बला और कुछ सितम ही सही
तमाम फ़िक्र ज़माने की टाल देता है
शफ़क़ के रंग निकलने के बाद आई है
यूँ वफ़ा के सारे निभाओ ग़म कि फ़रेब में भी यक़ीन हो
किस ख़ता की सज़ा मिली उस को
तुम्हारे बिना सब अधूरे हैं जानाँ