किस ख़ता की सज़ा मिली उस को
किस लिए रोज़ घटता बढ़ता है
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Habib Jalib
Javed Akhtar
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(760) Peoples Rate This
वक़्त ख़ामोश है टूटे हुए रिश्तों की तरह
यही फ़साना रहा है जुनूँ के सहरा में
मोहब्बत में आया है तन्हा अभी रंग
उस से मत कहना मिरी बे-सर-ओ-सामानी तक
शफ़क़ के रंग निकलने के बाद आई है
आप का लहजा शहद जैसा तरन्नुम-ख़ेज़ है
यूँ वफ़ा के सारे निभाओ ग़म कि फ़रेब में भी यक़ीन हो
मिरी चाहतों में ग़ुरूर हो दिल-ए-ना-तवाँ में सुरूर हो
ये मौसम सुरमई है और मैं हूँ
अभी से कैसे कहूँ तुम को बेवफ़ा साहब
ये शफ़क़ चाँद सितारे नहीं अच्छे लगते
मुझे रंग दे न सुरूर दे मिरे दिल में ख़ुद को उतार दे