हाल Poetry (page 23)

आज़ार-ए-दिल से रंग-ए-तबीअ'त बदल गया

रऊफ़ यासीन जलाली

लुभा रही तो है दुनिया चमक दमक की मुझे

रऊफ़ ख़ैर

धरती से दूर हैं न क़रीब आसमाँ से हम

रऊफ़ ख़ैर

जुदा वो होते तो हम उन की जुस्तुजू करते

रतन पंडोरवी

शौक़ से आए बुरा वक़्त अगर आता है

रसूल साक़ी

जिस को देखो एहतिसाब-ए-ज़ीस्त से ग़ाफ़िल है आज

रशीद शाहजहाँपुरी

इस तग-ओ-दौ ने आख़िरश मुझ को निढाल कर दिया

राशिद जमाल फ़ारूक़ी

नदी को देख कर

राशिद अनवर राशिद

उड़ती रहती थी सदा ख़ित्ता-ए-वीरान में ख़ाक

राशिद अनवर राशिद

मिरे घर के लोग जो घर मुझी को सुपुर्द कर के चले गए

रशीद रामपुरी

किस को लहद और मर्ग का डर हो

रशीद रामपुरी

खुला ये उन के अंदाज़-ए-बयाँ से

रशीद रामपुरी

जिस की गिरह में माल नहीं है

रशीद रामपुरी

दिल की क्या क़द्र हो मेहमाँ कभी आए न गए

रशीद रामपुरी

बात सूरज की कोई आज बनी है कि नहीं

रशीद क़ैसरानी

जोश-ए-वहशत मेरे तलवों को ये ईज़ा भी सही

रशीद लखनवी

जब से सुना दहन तिरे ऐ माह-रू नहीं

रशीद लखनवी

डर नहीं थूकते हैं ख़ून जो दुख पाए हुए

रशीद लखनवी

ये किस को जाग जाग के तारों की छाँव में

रशीद कौसर फ़ारूक़ी

हिरास है ये अज़ल का कि ज़िंदगी क्या है

रशीद कौसर फ़ारूक़ी

हुईं आँखें अजब बेहाल अब के

रसा चुग़ताई

तेरे आने का इंतिज़ार रहा

रसा चुग़ताई

सामने जी सँभाल कर रखना

रसा चुग़ताई

पास अपने इक जान है साईं

रसा चुग़ताई

हुस्न-ए-बज़्म-ए-मिसाल में क्या है

रसा चुग़ताई

हमदमो क्या मुझ को तुम उन से मिला सकते नहीं

रंगीन सआदत यार ख़ाँ

तुझ से कहना था हाल-ए-दिल लेकिन

राना आमिर लियाक़त

गले लगा के मुझे पूछ मसअला क्या है

राना आमिर लियाक़त

तुझ को बताएँ किस तरह, बैठे हैं कैसे हाल में

राना आमिर लियाक़त

बर्फ़ पिघली तो रास्ता निकला

राना आमिर लियाक़त

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